निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल
भारतेंदु हरिश्चन्द्र के इस दोहे से आप हमारी बात से अधिक जुड़ सकेंगे। भारत के अधिकतर क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। ये प्राचीनतम लिपियों में से एक ‘देवनागरी’ में लिखी जाती है। पर आज के दिन हमें हिन्दी के इतिहास पर नहीं बात करनी। आज के दिन यानी 14 नवम्बर को 1949 में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। संविधान सभा द्वारा ये निर्णय लिया गया था कि हिन्दी केंद्र की अधिकारिक भाषा होगी। ये निर्णय हिन्दी की देश में व्यापकता के मद्दे नज़र लिया गया था। देश के अधिकांश क्षेत्रों में हिन्दी अधिक मात्रा में बोली जाती रही है।
इसलिए हिन्दी के प्रसार के लिए 1953 से हर वर्ष 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ के नाम से मनाया जाता रहा है।
हिन्दी को यह दर्जा दिलाने के लिए उस समय काका कालेकर, सेठ गोविन्द दास, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी आदि ने अथक प्रयास किये।
हिन्दी को आधिकारिक राजभाषा रखने की बात सबसे पहले गांधी जी ने 1918 में उठायी। हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उन्होंने इसे आम जन की भाषा बताते हुए अपना प्रस्ताव रखा था।
भारत की आज़ादी के दो साल बाद 1949 में आज के दिन ही यह निर्णय लिया गया था। जो संविधान में भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में यूँ उल्लिखित है: संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा।
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास रत रहे साहित्यकारों में एक महत्वपूर्ण नाम आता है व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का। इनका जन्म आज ही के दिन 1900 ई० में जबलपुर, मध्यप्रदेश में हुआ था। इनका योगदान हिन्दी के लिए अतुलनीय था। इनके सम्मान के लिए ही इनके 50वें जन्मदिवस पर 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा रखने का निर्णय लिया गया।
इन्होंने लगभग सौ से ऊपर बौद्ध ग्रन्थ लिखे हैं। इनकी प्रमुख रचनाओं में सावित्री, हिन्दी गीता, हिन्दी रामायण इत्यादि हैं।
हिन्दी भाषा की बात करें तो ये बोलने वालों की संख्या के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। इससे ऊपर की दो भाषाएँ अंग्रेज़ी और मैंडरिन(चीन की भाषा) हैं।
हालाँकि इसको अच्छे से समझने वालों की संख्या दिन प्रति दिन कम होती जा रही है। हिन्दी अपनी लिपि या स्वयं एक स्वतंत्र भाषा के रूप में भी इतनी समृद्ध है कि ये अन्य कई भाषाओं के शब्द भी आसानी से लिख पढ़ सकती है या उन्हें अपने मे समाविष्ट भी कर सकती है।
यही कारण है कई शब्द प्रचलन से हट गये हैं उनकी जगह अंग्रेजी के शब्दों ने ले ली है। देखा जाए तो इससे हिन्दी का भविष्य ख़तरे में ही नज़र आता है।
आप हालात को ऐसे समझ सकते हैं कि कुछ लोग आज के दिन भी हिन्दी दिवस की बधाई अंग्रेजी में देते दिखायी दे जायेंगे। हमारा अपना मानना है कि ये कोई ग़लत या अनैतिक बात नहीं है आपको अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए किसी भी भाषा का इस्तेमाल करने की पूरी स्वतन्त्रा है। परन्तु ये चिन्ताजनक होने से
अधिक हास्यास्पद है।
आप दैनिक जीवन में कई ऐसे शब्द इस्तेमाल करते हैं जैसे यहाँ इस्तेमाल का प्रयोग किया गया है जो दूसरी भाषाओं से हिन्दी में आये और हिन्दी भाषियों द्वारा स्वीकृत हुए।
अचार, कैन्ची, चाक़ू, बस्ता, बच्चा, मेज़ इत्यादि ऐसे कई उदाहरण आपको मिल जायेंगे जो या तो फ़ारसी अरबी के या अंग्रेजी के शब्द होते हैं
यहाँ कि ख़ुशी, ख़ून, चश्मा, या बाल्टी जैसे शब्द भी हिन्दी भाषा के नहीं हैं।

उद्देश्य :
हिन्दी दिवस का प्रमुख उद्देश्य इस भाषा के भाषियों को ये बताना है कि अगर उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया तो हिन्दी का विकास बिल्कुल रुक जायेगा। फिर, सुनने में असम्भव लग रहा है पर, अन्य कई भाषाओं की तरह ये भी विलुप्त होने के कगार पर आ जायेगी।
और इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए आज के दिन से एक सप्ताह तक हिन्दी-सप्ताह मनाया जाता है। जिसमें कई विद्यालयों और कार्यालयों में प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। और लोगों के उत्साह वर्धन हेतु पुरस्कार समारोह भी आयोजित किये जाते हैं। जैसे राजभाषा गौरव पुरस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरस्कार। जिनके अन्तर्गत अन्य पुरस्कार भी दिये जाते हैं।

बात बस इतनी सी है कि जैसे हम अपनी तमाम वस्तुओं से लगाव रखते हैं अपने कपड़ों से अपने परिवार से अपने दोस्तों से उसी तरह ये भाषा भी अपनी भाषा है। ये भी उतने ही प्यार का हक़दार है जितना आप अपने परिवार से करते हो।
इस लेख में कई शब्द अन्य भाषाओं के भी प्रयोग में लाये गये हैं। जो कि हिन्दी का असम्मान नहीं है। आप अगर अपने परिवार से प्यार करते हैं तो दूसरे के परिवार से घृणा नहीं करते। वसुधैव कुटुम्बकम, भाषाओं की वसुधा के लिए भी लागू होता है।
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