अभी ज्यादा वक़्त नहीं बीता है उन बातों को जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने देश के प्रधानमंत्री को कायर और पागल बता दिया था। केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल, जो कि केंद्र के नुमाइंदे होते हैं, में आए दिन किसी न किसी बात पर विवाद होते रहता था। पिछले कुछ वक़्त से इस विवाद पर लगाम लगा था जो अब दुबारा उभर कर सामने आ रहा है। अब यह विवाद है चंडीगढ़ के लिए।
चंडीगढ़ केन्द्र शासित प्रदेश के साथ साथ पंजाब और हरियाणा राज्य की राजधानी भी है। देश के विभाजन के बाद चंडीगढ़ को लाहौर(जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है) की जगह पर विकसित किया गया था। क्यूँकि लाहौर ही पहले पंजाब की राजधानी थी। देश के विभाजन के बाद प्रथम ऐसा शहर है जो बहुत ही विकसित तौर पर बसाया गया था। जिसका ट्रेफिक सिस्टम पूरे भारत में सबसे अच्छा है। चंडीगढ़ पहले पंजाब की राजधानी थी लेकिन 1966 में पंजाब से अलग हो कर हरियाणा एक अलग राज्य बन गया हरियाणा को अलग राजधानी बनाने के लिए 5 साल का समय दिया गया।

हरियाणा के बँटवारे के बाद चंडीगढ़ पर 60% पंजाब को और 40% हरियाणा को हिस्सा दिया गया। तब से लेकर यह विवाद पंजाब और हरियाणा के बीच चल रहा है। चंडीगढ़ चूँकि पंजाब और हरियाणा की राजधानी के साथ साथ केन्द्र शासित प्रदेश भी है इसलिए यहां केन्द्र का थोड़ा बहुत दख्ल हमेशा से ही रहता आया है। लेकिन सरकारी कर्मचारी प्रदेशों के ही होते रहे हैं।
क्या है हालिया विवाद?
बीते 27 मार्च को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया कि केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ सेवा नियमों में बदलाव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केन्द्र के सेवा नियम चंडीगढ़ के सरकारी कर्मचारियों पर लागू होंगे। जिसका अब जोरों से विरोध शुरू हो गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि वे इस फैसले का विरोध सड़क से संसद तक करेंगे। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार पंजाब में अपना हस्तक्षेप करना चाहती है जो कि बहुत निन्दनीय है।

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है जिसके साथ मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी और प्रकाश सिंह बादल की अकाली दल ने भी केन्द्र के इस फैसले विरोध किया है। पंजाब की सारी पार्टियों ने एक सुर में कहा कि मोदी सरकार चंडीगढ़ में कर्मचारियों के जरिये पंजाब में अपना दख्ल चाहती है। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि पंजाब में भाजपा को लम्बे समय से कुछ खास हासिल नहीं हो रहा है जिसके कारण ही केन्द्र सरकार ऐसे कदम उठा रही है।
2021 चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव
2021 दिसम्बर में हुए चंडीगढ़ में नगर निगम के चुनाव में भाजपा को 35 सीटों में से सिर्फ 12 सीट ही हासिल हुई थी। आम आदमी पार्टी को 14 और कांग्रेस को 8 सीट मिली थी लेकिन चंडीगढ़ मेयर की कुर्सी भाजपा ने हासिल की थी। जिसको लेकर आप भाजपा और केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि अधिकारियों के दम पर भाजपा ने अपना मेयर बनाया है। आम आदमी पार्टी का आरोप था कि उनके एक सही वोट को फाड़ कर रद्द कर दिया और भाजपा के एक फाड़े हुए वोट को सही गिन कर भाजपा का मेयर बना दिया।

पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ को लेकर एक प्रस्ताव पारित हुआ।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने चंडीगढ़ को लेकर विधानसभा के एक दिन के विशेष सत्र में एक प्रस्ताव रखा जिसमें चंडीगढ़ को पंजाब का पूर्ण रूप से हिस्सा और पंजाब की राजधानी भी बताया गया]। जिसका समर्थन विधानसभा में विपक्षी कांग्रेस और शिरोमणी अकाली दल के विधायकों ने भी किया और यह प्रस्ताव बिना किसी विरोध के विधानसभा में पारित हुआ।
हरियाणा का तर्क
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ ही रहेगी। उन्होंने कहा कि आप की सरकार को आए अभी चार दिन भी नहीं हुए हैं, उनको ऐसे मुद्दे नहीं उठाने चाहिए। कर्मचारी केंद्र सरकार के फैसले के साथ हैं और बता रहे हैं इससे कर्मचारियों को काफ़ी लाभ मिलेगा ।

हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के नेता राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार द्वारा पंजाब विधानसभा में पास किये प्रस्ताव को असंवैधानिक बताया और इस मुद्दे को राज्यसभा में भी उठया। श्री हुड्डा ने कहा कि चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी थी है और रहेगी। हालाँकि दीपेंद्र हुड्डा भी चंडीगढ़ के कर्मचारियों को केंद्र के अधीन किए जाने के फैसले का विरोध किया है। हरियाणा में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आप सरकार ने पंजाब विधानसभा में पारित किये प्रस्ताव को असंवैधानिक बता कर सिरे से खारिज कर रहे हैं।
केंद्र में भाजपा की सरकार है भाजपा चंडीगढ़ और पंजाब के चुनाव में कुछ खास अभी तक कर नहीं पायी है। कर्मचारियों को केंद्र के अधीन करने से एक तो पंजाब में उनका दख्ल हो जायेगा और दूसरा यह कि सरकारी कर्मचारी भी उनके साथ हो जाएँगे जिसका लाभ आगे के चुनाव में भाजपा को मिलेगा।
ये भी देखिये: आखिर चाहते क्या हैं प्रशांत किशोर? क्या कॉंग्रेस के साथ जाएँगे?