नेताजी मुलायम सिंह यादव के परिवार में एक बार फिर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चुनाव के दौरान उनकी बहू अपर्णा यादव ने भाजपा में शामिल होकर परिवार को एक झटका दिया। हालाँकि उनके भाजपा में शामिल होने से कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा मगर अब प्रदेश के वरिष्ठ नेता, मुलायम सिंह यादव के भाई और सपा अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव भी भाजपा में शामिल होने के संकेत देने लगे हैं।
शिवपाल सिंह यादव 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अखिलेश यादव से नाराज़ चल रहे हैं। हालांकि अपनी सरकार में अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को कैबिनेट मंत्री बनाया था। सरकार ठीकठाक चल रही थी लेकिन अंदर खाने की खींचतान 2016 में निकल कर सबके सामने आ गयी जब 2017 के विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण का बात आयी। शिवपाल सिंह यादव अपने करीबियों को विधानसभा का टिकट देना चाहते थे और अखिलेश यादव अपने करीबियों को।
जब बात ज्यादा आगे बढ़ी तो अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा कर खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये और चाचा शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर अपने करीबी को अध्यक्ष बना दिया। जिससे शिवपाल यादव की टिकट की घोषणा की पावर ही ख़त्म हो गई और अखिलेश यादव पार्टी के बॉस हो गये। बाद में तमाम मान मन्नवल के बाद शिवपाल यादव जसवंत नगर से साइकिल निशान पर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने।
2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव:
2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा और प्रदेश में 325 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार बनी। शिवपाल सिंह यादव ने हार का ठीकरा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर फोड़ा और सपा से अलग होने का ऐलान कर दिया। शिवपाल यादव ने पहले “सेकुलर मोर्चा” बनाया और प्रदेश भर में फैले अपने लोगों से विचार विमर्श कर अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा की। पार्टी का नाम रखा ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)।’
सत्ता रूढ़ भाजपा का शिवपाल सिंह यादव के प्रति प्रेम:
जैसे ही शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बनायी और लोकसभा चुनाव का ऐलान किया सत्ता रूढ़ भाजपा का शिवपाल यादव के प्रति प्रेम बढ़ने लगा। सुप्रीम कोर्ट एक फैसले के बाद पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले पूरे देश में खाली हुए और वो बंगले वर्तमान के किसी वारिष्ठ मंत्री को दिया जाने थे। लेकिन उन खाली बंगलों में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का बंगला शिवपाल यादव को दिया गया जो उस वक़्त सिर्फ़ एक विधायक थे।
2019 लोकसभा चुनाव और शिवपाल यादव का रोल:
शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के लोकसभा चुनाव में अपने भाई मुलायम सिंह यादव की सीट छोड़ सभी सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की और खुद फिरोज़ाबाद सीट से चुनाव लड़ने का भी ऐलान किया। फिरोज़बाद वही सीट है जहाँ से यादव परिवार से आने वाले प्रोफेसर राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद थे। प्रदेश में सपा बसपा का गठबंधन था और शिवपाल यादव अलग से चुनाव लड़ रहे थे। जब परिणाम आए तो उनकी पार्टी कुछ खास इस चुनाव में नहीं कर पायी और शिवपाल यादव ख़ुद भी बुरी तरह चुनाव हार गये।
शिवपाल यादव पर इल्ज़ाम लगा कि उन्होंने अक्षय यादव को चुनाव हराने में भाजपा की मदद की है। अक्षय यादव यह चुनाव 28 हजार वोटों से हर गये और यहाँ शिवपाल यादव को 91000 वोट प्रात हुए।
2022 का चुनाव:
शिवपाल यादव भाजपा छोड़ सभी दलों के एक साथ आने की बात कई मौकों पर करते रहे जिस के चलते वो कई छोटी छोटी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात करते रहे। उनका इन नेताओं से मिलना तो मात्र बहाना था उनका निशाना तो अखिलेश यादव थे। बाद में तमाम मान मनुहार के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव साथ आए और एक साथ गठबंधन से चुनाव लड़ने का ऐलान किया। शिवपाल यादव ने कहा कि हमने अखिलेश यादव को अपना नेता मान लिया है ।
हालांकि चुनाव से कुछ समय पहले शिवपाल यादव का चुनाव निशान चाबी से बदल कर स्टूल हो गया तो अखिलेश यादव ने चाचा को साइकिल निशान पर ही चुनाव लड़ने के लिए कहा। चाचा भी तैयार हो गये। इस चुनाव में शिवपाल यादव के किसी भी सहयोगी को अखिलेश ने टिकट नहीं दिया। 2022 में विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तर प्रदेश में भाजपा की बहुमत की सरकार बनी लेकिन उसकी सीटें इस बार 325 से घट कर 273 रह गई और अखिलेश यादव की 47 से बढ़ कर 111 हो गयीं और सहयोगी दलों की मिला के ये संख्या 125 पहुँच गयी।
सपा की अपने विधायकों के साथ बैठक:
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीते 26 मार्च को अपने जीते हुए सभी विधायकों को प्रदेश मुख्यालय बुलाया जिसमें अखिलेश यादव को नेता प्रतिपक्ष भी चुना जाना था क्यूंकि अखिलेश यादव ने अपने सांसद पद से इस्तीफा देकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में रहने का फैसला किया था। शिवपाल यादव ने उसी दिन यह बयान दिया कि मुझे इस बैठक की कोई जानकारी नहीं है। मुझे बैठक में शामिल होने के लिए कोई निमंत्रण नहीं आया है।
उसके बाद सपा का बयान आया कि शिवपाल यादव को गठबंधन की बैठक में शामिल होने के लिए बुलाया जायेगा यह बैठक सपा विधायकों की है ना गठबंधन की। बाद में अखिलेश यादव गठबंधन के नेताओं की बैठक बुलाई जिसमें शिवपाल यादव का भी नाम था लेकिन शिवपाल यादव उसमें शामिल नहीं हुए। वे विधानसभा में विधायकों की शपथ ग्रहण में भी शामिल नहीं हुए। बाद में स्पीकर के कमरे में जा कर शपथ ग्रहण की।
क्या भाजपा में शामिल होंगे शिवपाल यादव?
हाल ही शिवपाल यादव की भाजपा मे जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। कहीं राज्यसभा जाने की बात तो कहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनने की बात चल रही है। इस बात हवा दी शिवपाल यादव के एक बयान ने जिसमें उन्होने अयोध्या जाने की बात कही और भगवान राम को लेकर एक चौपाई अपने ट्विटर पर पोस्ट की।
“प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥”
इसके साथ उन्होंने लिखा कि “भगवान राम का चरित्र ‘परिवार, संस्कार और राष्ट्र’ निर्माण की सर्वोत्तम पाठशाला है। चैत्र नवरात्रि आस्था के साथ ही प्रभु राम के आदर्श से जुड़ने का भी क्षण है।” इसके जवाब में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने कहा कि जो भी राम भक्त है उसका भाजपा में स्वागत है। हाल ही में हुए MLC चुनाव को लेकर भी उन्होंने अपना रुख जाहीर नहीं किया और इशारों में कहा कि यह तो गुप्त मतदान है। जिसे उन्होंने वोट दिया है वह जीतेंगे जरूर।
हालाँकि शिवपाल का राज्यसभा जाना तो मुश्किल लग रहा है लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद उन्हें दिया जा सकता है। क्यूंकि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अमूमन डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी दल के सदस्य को ही दिया जाता रहा है। चूँकि शिवपाल यादव तकनीकी तौर पर सपा के विधायक हैं और सपा ही विपक्षी दल है इस नाते ये सबसे आसान रहेगा।
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