राजनीति का खेल गज़ब है। यहाँ कौनसा ऊँट कब किस करवट बैठता है, सिर्फ़ ऊँट ही जाने। अभी कुछ ही दिन हुए हैं जब बिहार की राजनीति में उथल पुथल देखी गई थी जब मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी के तीनों विधायक पार्टी बदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे। राजनीति के जानकार उस वक़्त कह रहे थे कि अब बिहार में एनडीए सरकार बिल्कुल सुरक्षित है। और ऐसा लग भी रहा था क्यूँकि नंबर गेम को देखा जाए तो एनडीए के पास ज़रूरत से अधिक बहुमत हो गया था जिससे कि मुकेश साहनी और जीतनराम मांझी के बाग़ी होने से उत्पन्न होने वाले खतरे भी टाले जा सकते थे।
बिहार में अब ऊँट एक बार दुबारा करवट लेता नज़र आ रहा है। बीते दिनों में हुए कुछ सियासी घटनाक्रम देखे जाएँ तो मालूम चलता है कि बिहार राजनीति में दुबारा कोई नया मोड़ आने वाला है।
ऐसा क्या हुआ है बीते दिनों में बिहार राजनीति में?
सबसे पहले बात करते हैं मुकेश साहनी की जिन्होंने बाग़ी तेवर दिखाए। एनडीए का हिस्सा रहे मुकेश साहनी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से ही बाग़ी तेवर दिखा रहे थे और सरकार गिराने तक की धमकी दे रहे थे। उसके बाद हुए बोचहाँ उपचुनाव के नामांकन में मुकेश साहनी और एनडीए के बीच की तनातनी खुलकर सामने आई। दोनों ने अलग अलग उम्मीदवार उतारे। अचानक से मुकेश साहनी की पार्टी के तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए और वीआईपी में बच गए अकेले सन ऑफ मल्लाह यानी मुकेश साहनी।
राजद ने बोचहाँ उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल की। बोचहाँ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार के बड़े सियासी मायने निकाले गए क्यूँकि इन चुनाव में भाजपा का कोर वोटर माने जाने वाले भूमिहार समाज ने भी राजद के पक्ष में वोट दिए। बिहार में भाजपा का बड़ा चेहरा रहे सुशील मोदी ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह चिंताजनक है कि हमारा पारंपरिक वोटर हमसे दूर खिसक रहा है।
इसके बाद जैसे ही सबको लगा कि अब बिहार सरकार पूरी तरह से सुरक्षित है, वैसे ही राजनीति में नया हड़कंप मच गया। राजनैतिक हल्क़ों में चर्चा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आँखों का ऑपरेशन करवाने तेलंगाना जाने वाले हैं। ख़बर है कि कुछ दिन पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने राजद अध्यक्ष तेजस्वी यादव को भी बुलाया था। इसके राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तर पर सियासी मायने निकाले जा सकते हैं।
इसके बाद शुक्रवार 22 अप्रैल को लालू प्रसाद यादव को जमानत मिली और उनकी रिहाई की ख़बर आई। हालाँकि 22 को जुम्मा के मौक़े पर लालू प्रसाद यादव की धर्मपत्नी राबड़ी देवी ने इफ्तार की दावत रखी। यह दावत राजद अध्यक्ष तेजस्वी यादव की तरफ से दी गई। इस दावत में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी शरीक़ हुए। इसके बड़े सियासी मायने निकाले गए हैं।
हालाँकि इफ्तार में भाजपा नेता शहनवाज़ हुसैन और चिराग़ पासवान भी शामिल थे। उनके अलावा बिहार राजनीति के और भी कई बड़े चेहरे नज़र आए। जब नितीश कुमार से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इफ्तार दावत का न्यौता सभी नेताओं को मिला था और इसके कोई सियासी मायने नहीं हैं। नीतीश कुमार ने आखिरी बार यादव परिवार द्वारा दी जाने वाली इफ्तार की दावत में 2016 में शिरकत की थी जब जदयू और राजद मिलकर सरकार चला रहे थे।
खुद को कृष्ण और तेजस्वी को अपना अर्जुन बताने वाले तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने देर रात इफ्तार के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे सरकार बनाने वाले हैं और नितीश कुमार से उनकी सीक्रेट बात हो चुकी है। इससे पहले जुलाई 2018 में तेजप्रताप ने अपने घर के बाहर नितीश कुमार के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगाने की बात काही थी। कल उसी पर बात करते हुए तेजप्रताप ने कहा कि राजनीति में यह सब तो चलता रहता है। अब उन्होंने एंट्री का बोर्ड लगा दिया है।
इससे पहले कभी एनडीए के साथी रहे मुकेश साहनी भी लालू प्रसाद यादव की जमानत के फैसले पर खुशी जताते नज़र आए और कहा कि उनके सानिध्य से सभी को लाभ होगा और लालू जी सामाजिक न्याय के प्रणेता रहे हैं। इन तमाम घटनाक्रम को देखते हुए यह माना जा रहा है कि बिहार राजनीति में जल्दी ही कोई नया मोड देखने को मिल सकता है। बिहार राजनीति में पिछले 4 दशक से धुरी रहे लालू प्रसाद भी अब जेल से बाहर हैं।
नितीश-भाजपा में बढ़ती दूरी:
कुछ दिन पहले नितीश कुमार और भाजपा में दूरियाँ खुलकर सामने आई जब वे विधानसभा में भाजपा नेता और अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के बीच शाब्दिक जंग शुरू हो गई। नितीश कुमार ने विजय सिन्हा को लताड़ते हुए कहा कि इस तरह से सदन नहीं चलाया जाता लोकतंत्र से चलाया जाता है। इसके बाद भाजपा ने स्वतंत्रता सेनानी कुँवर सिंह द्वारा अंग्रेजों से जगदीशपुर क़िला छीने जाने की याद में किए जा रहे आयोजन से भी जदयू को दूर रखा।
हालाँकि 23 अप्रैल को इसी कार्यक्रम में शामिल होने आए भाजपा नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मुलाक़ात की है। मगर दोनों पार्टियों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।