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Home राजनीति

5 साल बाद दिग्विजय सिंह की 10 जनपथ में ‘वापसी’

जहाँ प्रशांत किशोर के कॉंग्रेस में शामिल होने की अटकलों का बाज़ार अभी गर्म ही चल रहा है वहीं पिछले कुछ दिनों से दिग्विजय सिंह को भी 10 जनपथ कई दफ़ा आते जाते देखा गया है।

by Krishna
April 25, 2022
in राजनीति
Reading Time: 1 min read
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दिग्विजय सिंह
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5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने के बाद कॉंग्रेस को देशभर में खूब आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था। इसके बाद आलाकमान कॉंग्रेस में बड़े फेरबदल की तैयारी में है। जहाँ प्रशांत किशोर के कॉंग्रेस में शामिल होने की अटकलों का बाज़ार अभी गर्म ही चल रहा है वहीं पिछले कुछ दिनों से दिग्विजय सिंह को भी 10 जनपथ कई दफ़ा आते जाते देखा गया है। कॉंग्रेस में बड़े फेरबदल की तैयारियों के साथ ही सोनिया गाँधी ने अपने पुराने भरोसेमंद नेताओं की तरफ दुबारा से देखना शुरू किया है। 

2017 के बाद एक बार फिर से दिग्विजय सिंह की 10 जनपथ पर बढ़ती हलचल के चर्चे सियासी गलियारों में सुनाई देने लगे हैं। दरअसल कॉंग्रेस के रिवाइवल के बारे में पिछले कुछ दिन से अहम चर्चाओं और मीटिंग्स का दौर चाल रहा है जिसमें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ मिलकर सोनिया गाँधी और प्रियंका गाँधी जुटी हुई हैं। सोनिया गाँधी ने इन मीटिंग्स में दिग्विजय सिंह को भी शामिल किया है और प्रमुख मुद्दों पर उनसे सलाह ले रही हैं। 

2017 में दूर हुए थे दिग्विजय: 

2017 में गोवा विधानसभा चुनाव हुए। कॉंग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन सरकार फिर भी नहीं बना सकी। उस चुनाव में गोवा के प्रभारी होने के नाते दिग्विजय सिंह ने कॉंग्रेस महासचिव के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस सिसतीफ़े के बाद दिग्विजय कॉंग्रेस के किसी बड़े फैसले में शामिल नहीं रहे और वे मध्यप्रदेश की राजनीति में ही सिमटकर रह गए थे। 2018 में मध्यप्रदेश में काँग्रेस सरकार बनने के बाद भी दिग्विजय को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। 

अब वापसी के क्या मायने हैं? 

दिग्विजय सिंह 1993 से लेकर 2003 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उस समय के मध्यप्रदेश में आज का छत्तीसगढ़ भी शामिल हुआ करता था तो दिग्विजय सिंह की दोनों राज्यों के संगठन में अच्छी पकड़ है। इसके अलावा दिग्विजय सिंह कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, बिहार, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं। इस तरह उन्हें सरकार और संगठन दोनों में काम करने का अच्छा खासा अनुभव रहा है। इन तमाम राज्यों में लोकसभा की तक़रीबन 250 सीट आती हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके अनुभव का फ़ायदा लिया जा सकता है। 

क्यूँ अहम हैं दिग्विजय सिंह? 

राघोगढ़ रियासत के राजा रहे दिग्विजय सिंह को दिग्गी राजा के नाम से भी जाना जाता है। वे पुराने कॉंग्रेसी हैं। अपना पहला चुनाव दिग्विजय सिंह ने 1969 में राघोगढ़ नगरपालिका का लड़ा था जिसके बाद वे 2 साल नगरपालिका चेयरमैन भी रहे। बाद में विधायक और फिर सांसद रहे। उसके बाद 10 साल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और लगभग 10 साल ही कॉंग्रेस महासचिव रहे। 

यूपीए 2 की सरकार के दौरान दिग्विजय को संकतमोचक समझा जाता था। सरकार जब भी किसी मुसीबत में फँसती थी तो उधर दिग्विजय सिंह कोई भी ऊल जलूल बयान दे देते थे और मुद्दा घुमा देते थे। राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बयानबाज़ी के चलते उनकी छवि खराब हुई। 2017 में महासचिव पद से इस्तीफ़ा देने के बाद वे शांत हो गए और मध्यप्रदेश में संगठन पर काम करने लगे। नर्मदा यात्रा के ज़रिये दिग्विजय ने मध्यप्रदेश में संगठन को मजबूत किया और 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दिलाई। 

कॉंग्रेस में अहमद पटेल के निधन और G-23 के बनने के बाद सोनिया गाँधी के पास पुराने और विश्वसनीय नेताओं की कमी आ गई थी। ऐसे में दिग्विजय सिंह की तरफ पलटकर देखा गया है। कॉंग्रेस अपने बुरे दौर से गुज़र रही है तो भी दिग्विजय ने पार्टी और अपने नेताओं भले वह सोनिया गाँधी हों या राहुल गाँधी, का साथ नहीं छोड़ा। जब कॉंग्रेस के तमाम बड़े नेता(G-23) अपने नेता अपनी पार्टी पर सवाल उठाया रहे थे तब भी दिग्विजय ने अपनी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। 

दिग्विजय लगातार सोशल मीडिया पर भाजपा और संघ पर हमलावर रहते हैं। हालिया कुछ समय से वे मध्यप्रदेश में भी काफी ऐक्टिव दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में जब कॉंग्रेस बड़े फेरबदल की तरफ अग्रसर है तो सोनिया गाँधी ने एक बार फिर दिग्विजय सिंह पर भरोसा जताया है। 

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