रबी की फसल की बुआई का वक़्त सर पे है और किसान को ना तो DAP मिल रहा है और ना ही MOP मिल रहा है। खरीफ़ की फसल लगभग पूरे देश भर में कट चुकी है और मंडियों में पहुँच रही है। ऐसे में अब किसान अगले सीजन यानी कि रबी की फसल की बुआई की तैयारियों में लगा हुआ है मगर बुआई होगी कैसे जब फसल की प्रारम्भिक ग्रोथ के लिए जरूरी खाद ही नहीं मिलेगा।

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देश भर में खाद के स्टॉक लगभग खत्म हो चुके हैं। सबसे बड़े किसानी वाले राज्य जैसे उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक में मुख्यतः DAP की भारी क़िल्लत का सामना करना पड़ रहा है। सहकारी समितियों के बाहर किसानों की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। कई जगह पर किसानों पर लाठियाँ भी चली हैं। मध्यप्रदेश के चम्बल डिवीजन में किसानों ने खाद की बोरियाँ लूट ली।
क्या हैं DAP, MOP और NPK?
DAP(डाई अमोनियम फॉस्फेट), MOP(म्युरीएट ऑफ पोटाश) और NPK(नाइट्रोजन,फॉसफोरस,पोटेशियम) तीनों उर्वरक हैं जो कि जमीन की उत्पादक क्षमता बढ़ाते हैं। इनका इस्तेमाल फसल की बुआई के समय बीज के साथ ही होता है। इन उर्वरकों को फसल के पौधे के प्राथमिक न्यूट्रीएन्ट माना जाता है जो कि फसल के शुरुआती ग्रोथ के लिए ज़िम्मेदार माने जाते हैं।

कालाबाज़ारी हो रही है:
खाद वितरण के लिए देशभर में सहकारी समितियाँ बनी हुई हैं जिनके पास अपनी भंडारण की सुविधा होती है। इन सहकारी समितियों में सरकार द्वारा तय किए गए दामों और ज़मीन के आधार पर तय मात्रा में ही मिलता है। देश भर में आई क़िल्लत के बाद DAP, NPK, MOP की कालाबाज़ारी भी देखने को मिल रही है।
DAP खाद को कालाबाजारी के जरिए खाद बेचा जा रहा है जो कि सहकारी समिति के रेट 1200 के मुक़ाबले 1600-1700 रूपये प्रति बैग खरीदना पड़ रहा है। किसानों को काला बाज़ारी के बाद भी खाद नहीं मिल पा रहा है। किसानों को DAP ना मिलने की वजह से पड़ोसी राज्यों से दूसरे खाद भी महँगे दामों पर खरीदने पड़ रहे हैं।
सरसों पर क्या असर रहेगा?
सरसों की बुआई का समय आ चुका है और देश के कई हिस्सों में सरसों की बुआई शुरू हो चुकी है। देश भर के कुल सरसों उत्पादन का लगभग 40 फीसदी हिस्सा राजस्थान में होता है। राजस्थान में किसानों को सहकारी समिति से उर्वरक खरीदना होता है जहाँ लंबी लंबी कतारें दिखाई देती हैं मगर खाद नहीं।
राजस्थान में यूँ भी फसल की पैदावार मानसून पर बहुत ज्यादा हद तक निर्भर करती है और ऐसे में अगर किसान को समय पर खाद नहीं मिल पाता है तो सरसों की पैदावार में जाहिर तौर पर कमी आएगी। राजस्थान के अलावा पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब भी बड़े उत्पादक राज्य हैं जहाँ खाद की क़िल्लत का सामना करना पद रहा है।
सरसों के तेल के भाव वैसे भी आसमान छू रहे हैं और ऐसे में अगर इस साल पैदावार घटती है तो आम इंसान को खाद्य तेलों की कीमतों में और उछाल देखने को मिल सकता है।
आलू पर क्या असर रहेगा?
आलू की पैदावार में भारत चौथे नंबर पर आता है जिसका लगभग 37% आलू अकेला उत्तरप्रदेश पैदा करता है। आलू की फसल बुआई के वक़्त अधिकांशतः किसान NPK या DAP खाद का इस्तेमाल करता है। आलू की बुआई का समय भी अक्टूबर-नवंबर महीना ही होता है। ऐसे में आलू की पैदावार लेने वाले किसानों को अगर जल्दी खाद नहीं मुहैया करवा पाती है सरकार तो आने वाले वक़्त में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
और किन किन फसलों पर पड़ेगा प्रभाव?
यदि खाद की क़िल्लत को जल्दी दूर नहीं किया जाता है तो इसका सीधा असर रबी सीजन की सभी फसलों पर पड़ेगा। हालाँकि गेहूँ ,जौ की बुआई में अभी 2-3 हफ्ते का समय है लेकिन सरसों, चना, तारामीरा और आलू की बुआई के लिए यह समय मुफीद है। उत्तरी भारत के विभिन्न हिस्सों में पिछले 2-3 दिन में हुई बारिश के बाद अब किसानों को बुआई शुरू करनी होगी।
क्या कारण हैं खाद की क़िल्लत के?
व्यापक तौर पर देखा जाए तो यह क़िल्लत वैश्विक बाजार में बढ़ी कीमतों के कारण है। उर्वरक बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल जैसे पोटेशियम, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कीमतों में इज़ाफ़ा देखने को मिल है। इससे आपूर्ति में गिरावट आई है।
एक हालिया मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आयात किए जाने वाले DAP की पहुँच क़ीमत(लागत प्लस माल भाड़ा) 675-680 डॉलर प्रति टन है, जो पिछले साल इस समय 370 डॉलर थी। MOP एक साल पहले 230 डॉलर प्रति टन पर आयात किया गया था, जबकि आज यह कम से कम 500 डॉलर में उपलब्ध है।
इसका मतलब यह है कि उर्वरक निर्माता ऐसी स्थिति में हैं जहाँ वे या तो उत्पादन कम करने के लिए या कीमतों को बढ़ाने के लिए मजबूर होंगे।
सरकार क्या कर रही है?
सरकार आँखें मूंदकर अपनी पीठ थपथपाने का काम कर रही है। इसके अलावा सरकार बस ऐलान कर रही है कि कहीं पर भी खाद की कमी नहीं आने देंगे। इसके साथ बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं सब्सिडी को लेकर। सनद रहे सब्सिडी खाद की खरीद पर है, जब खाद मिलेगा ही नहीं तो कैसी सब्सिडी?
ऐसी भारी क़िल्लत के बीच भी देश के कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और उर्वरक मंत्रालय संभालने वाले मनसुख मांडविया इस पर चुप्पी साधे बैठे हैं। बीते चार दिन से दोनों के ट्विटर हैन्डल से उर्वरकों की कमी पर कोई ट्वीट नहीं किया गया है। ट्वीट किए गए हैं तो सिर्फ़ प्रधानमंत्री की तारीफ़ों से भरे ट्वीट्स को रीट्वीट या कभी किसी को बधाई संदेश तो कभी अपनी सरकार की पीठ थपथपाते हुए संदेश।