27 सितंबर, 2018 को झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बोकारो जिले को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया था, लेकिन जिले के विस्थापित क्षेत्र के एक हिस्से में सरकार ने न तो कोई सरकारी शौचालय बनाया है और न ही स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण में सहायता की सरकारी योजना किसी भी परिवार तक पहुँच पाई है।
[रघुबर दास का ट्वीट देखने के लिए यहाँ क्लिक करें]
“हमारे सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री को भी हमारे गाँव का दौरा करना चाहिए और हमारे साथ कुछ दिन बितानेबचाहिए, फिर वे समझेंगे कि यहाँ शौचालय की समस्या कितनी बड़ी है।” बोकारो स्टील सिटी के विस्थापित गाँवों में से एक चेताटांड निवासी 40 वर्षीय मंजू ने कहा।
1956 में जब बोकारो स्टील प्लांट प्रस्तावित किया गया था, मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। राज्य सरकार ने भूमि खाली कर बोकारो स्टील प्लांट को सौंप दी, लेकिन उचित पुनर्वास और योजना पर समझौते की कमी के कारण, 825.855 एकड़ भूमि खाली नहीं हो सकी। मंजू इस खाली पड़ी जमीन के निवासियों में से एक है।
BSL की स्थापना 29 जनवरी 1964 को हुई थी। 25 जनवरी 1965 को भारत और सोवियत संघ बोकारो स्टील प्लांट के निर्माण के लिए सहमत हुए।

बोकारो स्टील प्लांट के पहले ब्लास्ट फर्नेस का उद्घाटन तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) की स्थापना 24 जनवरी 1973 को हुई थी और 1 मई 1978 को सार्वजनिक क्षेत्र की लौह और इस्पात कंपनियों के पुनर्गठन और विविध प्रावधान, 1978 के अनुसार बोकारो स्टील लिमिटेड का सेल में विलय हो गया।
चूँकि ये गाँव विवादित भूमि में स्थित हैं, इसलिए ये किसी पंचायत का हिस्सा नहीं हैं।
इन गाँवों की आबादी करीब 70 हजार है, और इनमें से अधिकांश आबादी लोकसभा और विधानसभा की मतदाता सूची में दर्ज है। लेकिन राज्य और केंद्र सरकार की किसी भी तरह की ग्रामीण योजना से वंचित है।
रघुवर दास की ओडीएफ घोषणा के बारे में पूछे जाने पर, 43 वर्षीय एक गृहिणी, सुमन चिड़चिड़ी होकर कहती हैं, “इस क्षेत्र में केवल कुछ ही शौचालय हैं, यहाँ तक कि एक दर्जन से भी कम। केवल कुछ तुलनात्मक रूप से संपन्न परिवारों के पास शौचालय है। लोग अपने दम पर निर्माण करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं और कोई भी सरकारी योजना हम तक नहीं पहुंची है और इसी लिए हम खुले में शौच करने को मजबूर हैं।
यहाँ केवल खुले में शौच की समस्या नहीं है। यहाँ के लोग ऐसे और और भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं.
नाम न छापने की शर्त पर सेल के संविदा कर्मियों में से एक और महुआर गाँव के रहने वाले एक युवक ने बताया, “अप्रैल और जुलाई के लंबे समय के बीच हवा का प्रवाह आमतौर पर स्टील प्लांट की तरफ से हमारे गाँवों की तरफ होता है। इन हवाओं के साथ, अवशेष के रूप में, हानिकारक धुआँ, हमारे घर, हमारे खेत और आश्चर्यजनक रूप से हमारे कुओं तक पहुँचता है। इन महीनों के दौरान इस क्षेत्र का सामान्य एक्यूआई 150 से अधिक हो जाता है। इस अवधि में कई व्यक्ति बीमार हो जाते हैं।”
वे आगे बताते है कि “निकटतम स्वास्थ्य देखभाल केंद्र लगभग 20 किलोमीटर दूर है। एक निजी ऑटो किराए पर लेने पर लगभग 500 रुपये खर्च करना पड़ता है, और हर परिवार इसे खर्च नहीं कर सकता है। हर गाँव में लगभग 15 लोग हैं जिनमें टीबी के लक्षण हैं लेकिन उनके परिवार इतने समृद्ध नहीं हैं कि शहर जाकर जाँच और इलाज करा सके”

स्वास्थ्य के अलावा यह क्षेत्र शिक्षा के मामले में भी काफी पिछड़ा है। स्थानीय कार्यकर्ता बिनोद राय बताते हैं, “यहाँ मौजूद कुछ सरकारी स्कूल जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं। पिछले कुछ वर्षों में, कई स्कूल बंद कर दिए गए हैं और उन स्कूलों को दूर के स्कूलों में विलय कर दिया गया है।”
इस क्षेत्र की अधिकांश आबादी खराब बुनियादी ढाँचे, प्रदूषण, गरीबी, बेरोजगारी, ख़राब स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ भ्रष्टाचार की भी शिकार हैं।
विस्थापित समाज के एक नेता ने कहा, “कई बार सेल प्रशासन ने अवैध रूप से हमारी जमीन में निर्माण कार्य शुरू करने की कोशिश की लेकिन हर बार यहाँ के लोगों ने संगठित होकर सेल के खिलाफ आवाज उठाई।”
जनवरी 2017 में बोकारो स्टील प्लांट के कूलिंग पोंड नंबर-2 के बगल में एक राख तालाब के अवैध निर्माण का विरोध कर रहे 10 विस्थापित नेताओं को पुलिस ने पकड़कर जेल भेज दिया। गिरफ्तारी के बाद 19 जनवरी को जनाक्रोश रैली हुई। सौभाग्य से 6 फरवरी को सभी गिरफ्तार नेताओं को जिला अदालत ने जमानत दे दी गई।”
स्थानीय निवासी और कार्यकर्ता वीरेंद्र कुमार ने कहा, “कुछ महीने पहले, जब मैं अन्य विस्थापित युवाओं के साथ रोजगार की मांग को लेकर बीएसएल मुख्यालय गया था, तो बीएसएल के एक वरिष्ठ अधिकारी अनुतोष मैत्रा ने बड़े अहंकार से कहा कि “मेरे शब्दकोश में ‘विस्थापित’ नाम का शब्द नहीं है।”
उसकी बातें सुनकर हम सब दंग रह गए। पिछले महीने, हमें एक समाचार रिपोर्ट से पता चला कि सीबीआई द्वारा अनुतोष मैत्रा से 29 लाख रुपये के घोटाले के आरोप में पूछताछ की जा रही है।”
सेल के फाटकों के अंदर भ्रष्टाचार पर चर्चा भले ही एक तरफ रख दी जाए, लेकिन इस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को भी सरकारी उपेक्षा और प्रशासनिक रिश्वत का सामना करना पड़ता है।
इस क्षेत्र के एक बेरोजगार युवक ने कहा, “अगर हम किसी भी तरह की सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो हमें अपना निवास और जाति प्रमाण पत्र संलग्न करना होता है। जब हम उपखण्ड कार्यालय में निवास और जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने जाते हैं तो हमें बताया जाता है कि हमें विस्थापित होने के कारण प्रमाण पत्र नहीं मिल सकता है लेकिन उसी कार्यालय के बाहर खड़े दलाल एक हजार रुपये लेकर हमें प्रमाण पत्र दे देते हैं। ”
स्थानीय निवासी चमेली ने कहा, “हमारे गाँव स्टील प्लांट की वजह से प्रदूषित हैं। खेती, हमारे व्यवसाय का आवश्यक स्रोत, अब कल्पना के दायरे से परे है। दामोदर नदी की धाराएं, जो हमारे पीने के पानी का स्रोत था, वर्तमान में प्रदूषित हो चुकी है। कुछ लोगों के घर निजी कुएँ थे लेकिन वे भी प्रदूषण से नहीं बच पाए।”

उन्होंने आगे कहा, “भाजपा नेता बिरञ्चि नारायण ने विधानसभा चुनाव से पहले हमसे मुलाकात की और हमसे वादा किया कि वह हमारी समस्याओं का समाधान करेंगे, हालांकि जीतने के बाद, वह हमें भूल गए। यहाँ तक कि अगर इन गाँवों से कोई उनके कार्यालय में समस्याओं के साथ जाता है, तो वह उनसे मिलने से इनकार करते हैं।”
बुनियादी ढाँचे के बारे में बात करते हुए, एक बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि “इस क्षेत्र में सड़कों का निर्माण केवल वहाँ तक किया जाता है जहाँ तक सेल के वाहन यात्रा करते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम अच्छी सड़कों का उपयोग करने के लिए बने ही नहीं हैं। जब भी कोई सड़क बनती है, हम आशा करते हैं कि स्थानीय निवासियों को सड़क नियोजन योजना में रोजगार मिलेगा, लेकिन सेल के अधिकारी बिहार और उड़ीसा जैसे पड़ोसी राज्यों से मजदूर बुला कर काम करवाया करते हैं।

कुछ समय पहले इन विस्थापित ग्रामीणों ने विस्थापित साझा मंच नाम से एक संगठन बनाया जिसके माध्यम से वे अपनी माँगों को राज्य और प्रशासन के अग्रदूतों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने भूमि अधिग्रहण, खराब शिक्षा और चिकित्सा की स्थिति और बेरोजगारी जैसे कई मुद्दों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को संगठित रूप से पत्र लिखा है।
इस मामले पर विस्थपित साझा मंच के एक सदस्य ने कहा, “हमें उम्मीद है कि वर्तमान झामुमो सरकार पिछली सरकारों की तरह अक्षम नहीं होगी और हमारी समस्याओं को जल्द ही हल करने का प्रयास करेगी।”
लेखक विक्रम राज एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं।
Comments 1