‘कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग’
19 वीं सदी के महान शाइर मिर्जा ग़ालिब का यह मिसरा बयान करता है इंसान के जिए जाने की वजह। इंसानी ज़िंदगी यूँ तो आरज़ी शय है मगर फिर भी इंसान में ज़िंदगी जीने की ख्वाहिशात कभी खत्म नहीं होती हैं। हम जिए जाते हैं इस उम्मीद में कि आने वाला कल बीते हुए कल से बेहतर होगा। लोग दुनिया में आते हैं, चले जाते हैं। मगर पीछे छोड़ जाते हैं एक विरासत में अपना अपना हिस्सा।
इंसान अपनी नौ-नस्ल को अगर कोई तोहफ़ा दे सकता है तो वह है यह विरासत। इसी साझा विरासत को बचाकर अपनी आने वाली नस्लों को स्थानांतरित करने का ज़िम्मा उठाया है हर्फ़कार फाउंडेशन ने। हर्फ़कार के संस्थापक अज़हर इक़बाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर बीते शनिवार को शिकवा हवेली में आराइश-ए-सुख़न का आयोजन किया।
शिकवा हवेली दिल्ली से सटे बाग़पत के काठा गाँव में मुग़लों के ज़माने से मौजूद है। हवेली पुरानी होने की वजह से जीर्ण-शीर्ण हालात में पहुँच चुकी थी मगर हवेली के मालिक अल्का रज़ा और शारिक़ बिन रज़ा ने इसकी मरम्मत करवाई और इसे एक शानदार रूप दिया।
हर्फ़कार फाउंडेशन के संस्थापक और मशहूर शाइर अज़हर इक़बाल ने कहा, “हिंदुस्तान में फ़नकारों की बड़ी नाक़दरी है। कलाकारों को जब उनका हक़ नहीं मिलता तो मेरा दिल टूट जाता है। मैंने कई फ़नकारों को दिन भर बिना किराए, बिना पैसे के महीनों रिहर्सल्स करते देखा है।”
आगे वे कहते हैं कि, “कोविड के बाद कलाकारों की हालत बहुत ख़स्ता है क्योंकि ये कार्यक्रम ही उनकी जीविका का साधन होते हैं। इस शुरुआत का लक्ष्य है – इसी तरह के और कार्यक्रम आयोजित करवाना, ख़ास तौर पर हिंदुस्तानी साझी विरासत के कार्यक्रम।”
आराइश-ए-सुख़न का आग़ाज़ शनिवार सुबह 10 बजे के क़रीब दास्तानगोई से हुआ।

दास्तानगोई के फ़न में मशहूर फ़ौज़िया दास्तानगो ने प्रोफेसर दानिश इक़बाल की लिखी हुई दास्तान-ए-राम सुनाई जिसका एक हिस्सा कुछ इस तरह से है
“राम ने चौदह साल गुज़ारे ,लेकिन घर की आस लिए
हम को तो एक उम्र हुई है, घर छोड़े वनवास लिए
पत्थर ही जब पूजने ठहरे, मंदिर की पाबंदी क्या
परबत परबत घूम रहे हैं, अब तो हम सन्यास लिए”
इसके बाद उर्दू शाइरों की नई नस्ल के एक बेहतरीन शाइर पल्लव मिश्रा ने पाकिस्तानी लेखक पतरस बुखारी का मज़मून ‘मरहूम की याद’ पढ़ा। पतरस बुखारी की लेखन शैली जितनी मज़ेदार थी उतने ही मज़ेदार तरीक़े से पल्लव ने सुनाया भी।
आराइश-ए-सुख़न में शाइर तरकश प्रदीप के शे’री मजमुए “उदास लोगों का होना बहुत जरूरी है’ की रस्म-ए-इज़रा भी निबाह हुई। इस किताब का विमोचन फ़रहत एहसास ने किया। फ़रहत एहसास ने इस किताब के विमोचन पर बताया कि दुनिया में उदास लोगों का होना कितना अहम है।

इसी कार्यक्रम में मशहूर-ए-ज़माना शाइर फ़रहत एहसास की सदारत में मुशाइरे का आयोजन भी हुआ जिसमें देश के अलग अलग हिस्सों से त’अल्लुक़ रखने वाले शो’अरा ने शिरकत की। मुशाइरे में फ़रहत एहसास, विकास शर्मा ‘राज़’, तरकश प्रदीप, विपुल कुमार, पल्लव मिश्रा, इम्तियाज़, अज़हर नवाज़ और आक़िब साबिर ने अपने कलाम से सामईन को रू-ब-रू कराया।
इसके बाद आराइश-ए-सुख़न को अपने शानदार अंजाम तक पहुँचाने का काम किया दिल्ली घराने के क्लासिकी संगीतकार फ़रीद हसन और महबूब हुसैन ने। फ़रीद हसन ने राग मल्हार और मशहूर ठुमरी ‘याद पिया की’ पेश करके सामईन को लुत्फ़ अंदोज़ किया।

सूफ़ी संगीत के प्रतिनिधि कलाम ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके’ के साथ फ़रीद हसन ने इस शानदार आयोजन को एक बेहतरीन अंज़ाम दिया।
आयोजन के स्पॉन्सर मुत्थुट माइक्रोफिन और शोभित यूनिवर्सिटी रहे। यह शानदार कार्यक्रम हर्फ़कार फाउंडेशन और शिकवा हवेली ने मिलकर आयोजित किया जिसमें कला के विभिन्न रूपों का समागम देखने को मिला। आने वाले वक़्त में भी हर्फ़कार फाउंडेशन इसी तरह के बेहतरीन कार्यक्रम आयोजित करवाती रहेगी।