कुछ रोज पहले सोशल मीडिया पर एक लड़के प्रदीप मेहरा की वीडिओ वाइरल थी। वह अपनी रोज़ाना की नौकरी के बाद दौड़ते हुए घर जा रहा था। पत्रकार ने जब उसे पूछा तो उसने कहा कि वह आर्मी में भर्ती होने कि तैयारी करता है। प्रदीप मेहरा को खूब भर भर के प्रशंसा मिली, कई साक्षात्कार भी हुए। निश्चित तौर पर प्रदीप की मेहनत की तारीफ की जानी चाहिए, मगर प्रदीप जैसे कई लाख नौजवान गाँवों में खेत खलिहानों में मैदान बना बना कर रोज़ाना सुबह शाम कई कई किलोमीटर दौड़ लगाते हैं और सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी करते हैं हमें यह तथ्य नहीं भूलना चाहिए।
हमें यह भी देखना पड़ेगा कि 2014 में राष्ट्रवाद की लहर पर चढ़कर सरकार बनाने वाले नरेंद्र मोदी जी की सरकार में सेनाओं का हाल खस्ता चल रहा है। सेना की मजबूती और सेना द्वारा किए गए कामों पर भी वोट मांगने वाली मोदी सरकार के कार्यकाल में सेनाओं में सवा लाख से भी अधिक पद खाली पड़े हैं। पिछले दो-ढाई साल से सेनाओं में भर्तियाँ बंद पड़ी हुई हैं। बीते दिसंबर में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने संसद पटल पर कहा था कि भारतीय सेना में 104653 पद रिक्त हैं जिनमें से 97 हजार से अधिक जवानों के पद खाली हैं।
हर साल दो इंटेक होते थे एयर फोर्स में, दो साल से बंद:
भारतीय वायुसेना दो साल पहले तक एयरमैन के पद पर हर वर्ष दो भर्तियाँ किया करती थी जिनसे लगभग 7000 युवकों को भर्ती किया जाता था। वायुसेना इन दोनों भर्तियों को 6 महीने के अंतराल पर तय समय से पूरा भी कर देती थी। लेकिन कोरोना के बाद से कोई भर्ती पूरी नहीं हुई है। साल 2020 का पहला इंटेक जनवरी 2020 में होना था जिसकी परीक्षा प्रक्रिया 2019 में पूरी कर ली जानी थी। मगर यह इंटेक कोरोना के चलते जुलाई 2020 में हुआ।
इसके बाद 2020 के दूसरे इंटेक को आगे खिसका दिया गया और उसी का नाम बदल कर 2021 का दूसरा इंटेक बना दिया गया। अभ्यर्थी बीती जुलाई में 2/2021 के लिए लिखित परीक्षा दे चुके और उसके बाद से रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं। 1/2022 इंटेक जो जनवरी में होना था उसका अभी तक कोई अता पता नहीं है।
नौसेना का हाल भी ठीक इसी तरह से है। भारतीय नौसेना हर साल लगभग 6000 युवकों को भर्ती करती आई थी मगर साल 2020-21 में उन अभ्यर्थियों का आँकड़ा महज़ 2722 रहा जिन्हें नौसेना के लिए नामांकित किया गया। इनमें से भी अधिकांश युवाओं को अभी तक जॉइनिंग लेटर का इंतजार है। 2021-22 में यह आँकड़ा 5547 रहा और इस साल भी वे अपनी अपनी भर्तियों के रिजल्ट्स का या जॉइनिंग लेटर का इंतजार कर रहे हैं।
थल सेना में 2 साल से एक भी नया सैनिक भर्ती नहीं:
भारतीय थल सेना में पिछले दो साल से खुली भर्तियाँ बंद पड़ी हुई हैं। पहले सेना मुख्यालयों पर हर वर्ष खुली भर्तियाँ हुआ करती थी जिनमें अभ्यर्थी सीधा शारीरिक परीक्षा में शामिल हो सकते थे। लेकिन उन्हें भी कोरोना के नाम पर 2020 में ही रोक दिया गया। उसके बाद साल 2021 के शुरुआत में भर्तियाँ फिर से खुली थी जिनकी परीक्षाएँ अभी तक नहीं हुई हैं। हालाँकि अफसरों की भर्तियाँ NDA/CDS के माध्यम से लगातार जारी हैं।
रक्षा राज्य मंत्री के अनुसार 2020-21 में 97 रैली भर्तियाँ प्रस्तावित थीं जिनमें से महज़ 47 की प्रक्रिया शुरू हो सकी। इन 47 में से सिर्फ़ 4 भर्तियों में लिखित परीक्षा हो सकी। वहीं अगर बात की जाए 2021-22 की तो इस सत्र मे 87 रैली भर्ती होनी तय थीं जिनमें से सिर्फ़ 4 की प्रक्रिया शुरू हो सकी। इन चारों भर्तियों में भी अभी तक परीक्षा नहीं हो पाई हैं। इसके चलते पिछले दो साल में एक भी नया जवान सेना में भर्ती नहीं किया गया है जबकि हर वर्ष लगभग 50 हज़ार जवान रिटायर होते हैं।
घर बैठे बैठे हुए ओवरएज हो रहे युवा:
अभ्यर्थियों को वायुसेना और नौसेना में भर्ती के लिए बहुत कम समय का अंतराल दिया जाता है उसके बाद ओवरएज घोषित कर दिया जाता है। जाने कितने ही अभ्यर्थी इन बीते दो सालों में आयु की सीमा पार कर चुके हैं। भारतीय सेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है और नौकरी देने के मामले में भारतीय रेल के बाद दूसरी सबसे बड़ी संस्था है। लेकिन कोरोना के बहाने सेना की भर्तियाँ बंद पड़ी हैं। रेल विभाग में 2019 की NTPC भर्ती अभी तक एक चरण ही पूरा कर पाई है। बाक़ी बची हुई भर्तियाँ निजीकरण की भेंट चढ़ गईं। ऐसे में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ खड़ी हुई है।
सरकार भर्ती करेगी संविदा सैनिक:
बेरोजगारों के लिए इसी बीच एक और बुरी ख़बर सामने आ रही है। तीनों सेनाओं ने भारत सरकार के उच्च अधिकारियों के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि 3-3 साल के लिए कान्ट्रैक्ट पर सैनिकों की भर्ती की जाए। इसे “अग्निपथ भर्ती प्रवेश योजना” नाम दिया जाना तय हुआ है जिसके तहत भर्ती होने वाले सैनिकों को अग्निवीर कहा जाएगा। बड़ी बात यह है कि सरकार न तो इन अग्निवीरों को पेंशन देगी और न ही रिटायरमेंट संबंधित कोई अन्य लाभ देगी।
देश में बड़े पैमाने पर पिछले कुछ वर्षों में पक्की सरकारी नौकरी के बदले संविदा पर कर्मचारी रखने की परंपरा चल निकली है। इन संविदा कर्मियों को सरकारें जरूरत के मुताबिक़ इस्तेमाल करती हैं और फिर जब जरूरत खत्म हो जाति है तो इन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। राजस्थान में कोरोना के दौर में बड़े पैमाने पर कोरोना स्वास्थ्य सहायकों की भर्ती की गई थी। हाल ही में सरकार ने ज़रूरत खत्म होने पर उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का निर्णय ले लिया है। संविदा कर्मचारियों को न तो तनख्वाह उचित मिलती है और ना ही अन्य भत्ते। कुल मिलाकर बहुत कम दरों पर उनसे काम लिया जाता है।